गुलाबी गैंग व महिला सशक्तीकरण

इंडियन पैनोरमा के द्वारा शिलांग मे आयोजित फिल्मोत्सव के अंतिम दिन (६ मार्च, २०१४), यानि कल, निष्ठा जैन द्वारा निर्देशित गुलाबी गैंग देखी।  सम्पत पाल के प्रयासों द्वारा बनाए गए गुलाबी गैंग की प्रष्टभूमि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र के बांदा जिले मे स्थित ग्रामों मे महिलाओं के प्रति बड्ते अत्याचारों की कहानी है। भारतीय समाज का एक बहुत बड़ा हल्का इस मद मे लिप्त है कि पारिवारिक, सामाजिक व आर्थिक निर्णयों मे पुरुष की प्रधानता सार्वभौम है। इतना ही नहीं लड़कियों व महिलाओं का मानसिक व शारीरिक शोषण इस पुरुष-प्रधान समाज का एक अंग सा बन गया है।

उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व देश के कई अन्य स्थानो पर महिलाओं के प्रति अन्याय व उनका शोषण आय दिन की बात हो गई है।  सबसे चौकाने वाली बात तो यह है कि शोषितों के परिवार वाले भी उनके साथ खड़े होने को तैयार नहीं हैं और इसको भगवान व प्रकृति के द्वारा किया कृत्य मान कर संतुष्ट हैं। शोषण कर्ता के खिलाफ आवाज उठाना असंभव सा दीखता है। ऐसी परिस्थितियों मे एक महिला, सम्पत पाल खड़ी होती है और अपने गाँव की अन्य महिलाओं को यह बात समझाती है कि यदि हमने अपनी आवाज बुलंद नहीं की तो क्षेत्र के दबंग लोग, जिसमे पुलिस वाले, सरकारी अधिकारी, नेता आदि भी सभी शामिल हैं, महिलाओं का शोषण करते रहेंगे और इससे सामाजिक विषमता व क्षेत्र का सामाजिक व आर्थिक विकास प्रभावित होगा। उनके द्वारा प्रारम्भ की गई इस मुहिम मे धीरे-धीरे और महिलाएं जुडने लगी और जब महिलाओं ने घर से बाहर निकलना प्रारम्भ किया, उनको लगा कि वे अपनी आवाज को बुलंद कर सकती हैं और जब वे एक समूह मे हैं तो उनकी बातों पर गौर करने वाले भी होते हैं। समूह की शक्ति को सम्पत बहुत ठीक प्रकार से जानती हैं, उनको पता है कि अनशन की ताकत क्या होती है| इसी सोच को संपत ने आस पास के गाँव में भी फैलाया है, जिसके परिणामस्वरूप इस गैंग का विस्तार पास के गावों मे भी हुआ है।

गुलाबी गैंग महिला सशक्तीकरण का एक बहुत ही ज्वलंत व व्यावहारिक उदाहरण है। यदि महिलाओं के प्रति अपराधों को नियंत्रित करना है तो महिलाओं को घर से बाहर निकलना होगा व समाज को अपनी आवाज मे यह बतलाना होगा कि स्त्री व पुरुष दोनों बराबर के भागीदार हैं और पुरुषों द्वारा महिलाओं पर किए जा रहे अमानवीय व्यवहार व अत्याचारों को अब महिलाएं नहीं सहेंगी। दहेज न देने पर घर की बहुओं को जला देना, बलात्कार व महिलाओं के प्रति दुर्व्यवहार व उनको नीची दृष्टि से देखना इन गावों मे रोजमर्रा की घटनाएँ थीं, परंतु सम्पत की इस पहल ने पुरुषों की प्रधानता वाले इस समाज मे महिलाओं मे एक नहीं जागृति पैदा की है, और इसका परिणाम यह हुआ है कि इन क्षेत्रों मे इस गैंग की कुछ सदस्य महिलाएं ग्राम प्रधान का चुनाव जीती हैं व अपने ग्राम के निर्णयों को लेने मे सक्षम हो पाई हैं। 

गैंग के सभी सदस्यों को गुलाबी साड़ी पहनना व हाथ मे एक डंडा रखना नियमतः आवश्यक है। डंडे का प्रयोग ये सदस्य करते हैं अथवा नहीं, पता नहीं, परंतु इतना निश्चित है, कि डंडा एक संकेत के माध्यम से काफी कुछ कहता है। यह सदस्यों की पहचान का हिस्सा है। डंडा जहाँ इन सदस्यों को एक शक्ति प्रदान करता है, वहीँ कहीं न कहीं शोषण करने वालों के मन में एक डर भी उत्पन्न करता है| अपने आप में यह भी महिला सशक्तिकरण का एक भौतिक व सफल उदाहरण है|

सम्पत पाल का स्वयं का विवाह बहुत छोटी उम्र मे हो गया था।  अब उनके पाँच बच्चे हैं। वे वाल विवाह के दुष्परिणामों को भली-भांति जानती हैं| लगभग 10-11 वर्षों से सतत कार्य करते हुए इस गैंग ने अपनी एक अलग पहचान बनायी है व एक नयी सोच को जन्म दिया है जिससे महिलाओं में एक नवीन चेतना का संचार हुआ है व इसका प्रभाव उन पुरुषों के व्यवहार पर भी पड़ा है जो महिलाओं के प्रति नीची द्रष्टि रखते थे| मेघालय के मात्रवंशीय समाज के समक्ष इस प्रकार का चित्रण एक अजब सा चित्र प्रस्तुत करता है व पुरुष-प्रधान समाज की कुरीतियों से दूर रहने का सन्देश भी देता है|

सम्पत पाल को अपनी फिल्म का हिस्सा बनाने व इस माध्यम से सम्पत को घर-घर पहुँचाने का जो कार्य निष्ठा जैन जी ने किया है वह अत्यंत ही सराहनीय है|  फिल्म सामाजिक चिंतन को एक सकारात्मक दिशा देने का बहुत ही सशक्त माध्यम है| जिन परिस्थितियों का सामना करते हुए निष्ठा जी ने निडरता से समाज के भिन्न पहलुओं को अपनी इस फिल्म के माध्यम से जन-जन तक पहुँचाया है वह उनकी अपने कार्य के प्रति सजगता व प्रतिबद्धता को परिलक्षित करता है, जिसके लिए वे व उनकी पूरी टीम धन्यवाद की पात्र है| 

मेरे एक प्रश्न के उत्तर में निष्ठा कहती हैं यह आवश्यक नहीं कि गुलाबी गैंग का विस्तार हो व इस प्रकार के प्रयास हर क्षेत्र में किये जाएँ, आवश्यक यह है कि समाज का गठन इस प्रकार हो कि हमें गुलाबी गैंग जैसे संगठनों की जरुरत ही महसूस न हो| मैं मेघालय में रहकर संभवतः ऐसा सपना देख सकता हूँ|

यह एक संयोग ही है कि आज ही अपने जीवन की प्रथम फीचर फिल्म निर्देशित करने वाले सौमिक सेन ने एक हिंदी फीचर फिल्म रिलीज़ की है 'गुलाब गैंग'| इस फिल्म को प्रोडूस किया है अनुभव सिन्हा ने व इसमें माधुरी दीक्षित व जूही चावला मुख्य भूमिकाओं में हैं| ऐसा माना जाता है कि यह फिल्म सम्पत पाल के संघर्ष की कहानी पर आधारित है, हालांकि प्रत्यक्ष रूप से सम्पत का उससे कोई लेना देना नहीं है| इस विषय में अधिक इस फीचर फिल्म को देखने के बाद ही कह सकूँगा|

७.३.१४ 

Comments

Popular posts from this blog

My Manipur Diary

Discontinuance of Money Order Service by India Post

Punjab or Panjab