सकारात्मक चैनल की आवश्यकता

कल हमलोग कार्यक्रम देखा। अच्छा लगा। आज के समय की तीन प्रतिभाओं को देखा व सुना, ह्रदय भावुक हो गया। वर्तमान समय मे जब सभी चैनलों पर नकारात्मक समाचारों की होड़ लगी हो, उस माहौल में इस प्रकार के कार्यक्रमों को देखकर एक आशा की किरण दिखाई देती है। ऐसा कदापि नहीं है कि हमारे आस पास कुछ अच्छा नहीं हो रहा है, ऐसा कदापि नहीं है कि सभी कुछ ख़राब ही है, सभी लोग नकारात्मक सोच के ही हों, यदि हम अपने आसपास देखें व विचारें तो आज भी कई प्रेरणाप्रद अध्याय दिन प्रतिदिन जुड़ रहे है। यह एक विडम्बना ही है कि हमारी द्रष्टि सकारात्मक घटनाओं, व्यक्तियों, प्रयोजनों, योजनाओं इत्यादि पर उतनी जल्दी नहीं जाती, जितनी जल्दी हम नकारात्मक ख़बरों की और आकर्षित हो जाते हैं। इस परिप्रेक्ष्य में मीडिया की भूमिका अति महत्वपूर्ण हो जाती है। 

मेरे मस्तिष्ट मे एक विचार आता है, कि क्या वर्तमान सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था में (जहाँ सब कुछ बाज़ार में उपलब्ध हो, जहाँ सब कुछ बिकता हो, जहाँ प्रतिस्पर्धा का वर्चस्व हो) यह संभव है कि एक चैनल ऐसा स्थापित किया जाये जिसमे केवल सकारात्मक समाचारों का ही प्रसारण हो, जिस पर, देश-विदेश के महान व्यक्तित्वों के बारे में बताया जाये, जहाँ उन सभी सकारात्मक सोच के व्यक्तिओं का सामजिक मुद्दों पर मंथन हो, जहाँ क्षेत्रीय, राज्यस्तरीय, राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक प्रयासों के बारे में चर्चा हो, जहाँ किसी भी प्रकार की नकारात्मक सोच को न स्वीकारा जाये, जहाँ पैसे से अधिक मूल्यों (मानवीय) की चर्चा हो। मेरे विचार से शायद ऐसी कल्पना करने में कोई दोष नहीं है व यह संभव भी है। 

हमारे बुजुर्ग कहते थे, जैसा हम देखते हैं, वैसे बन जाते हैं। दांते ने कहा था, मुझे अपने मित्रों के बारे में बताओ, मैं बताऊंगा तुम कौन हो। मुझे लगता है कि जिस प्रकार से नकारात्मक समाचारों को बड़ा चदाकर प्रस्तुत किया जा रहा है, संभवतः समाज में इसका प्रभाव, सकारात्मक न होकर नकारात्मक हो रहा है और आज के बच्चे उसी सोच का शिकार होते जा रहे हैं, बच्चे ही क्या, सभी लोग किसी न किसी रूप में इस सबको स्वीकार भी करने लगे हैं, यह एक भयावह स्थिति की और इंगित करता है, मुझे याद है, एक बार (लगभग ७-८ वर्ष पूर्व) यहाँ शिलांग में एक विचार-गोष्टी चल रही थी, उसके मुख्य वक्ता शिलांग के एक प्रतिष्टित अंग्रेजी समाचार पत्र के संपादक थे, गोष्टी का विषय था - Role of Media in Modern Times (आधुनिक समय में मीडिया की भूमिका), मैंने संपादक महोदय को सुना, उन्होंने उस समय की सामाजिक बुराइयों को दूर करने में मीडिया की भूमिका पर अपने विचार रखे, सुनकर वास्तव में अच्छा लगा, सभी लोगों ने खूब तालियाँ बजाईं। उसके बाद प्रश्न-उत्तर सत्र था। यहाँ यह बताना आवश्यक है कि मैंने उस दिन सुबह उस दिन का समाचार पत्र पड़ा था, सो मैंने हाथ उठाया व अपनी प्रश्न पूछने की इच्छा जताई, मुझे प्रश्न पूछने का अवसर दिया गया, मैंने पूछा कि क्या आप मुझे बता सकते हैं, कि आज के समाचार पत्र में मुख्प्रष्ट पर कोई भी सकारात्मक खबर क्यों नहीं है, जबकि प्रष्ट ४ पर एक छोटी सी खबर छपी है कि एक युवक ने अपने कौशल को दिखाते हुए अपने गाँव के लोगों को किस प्रकार अच्छा कार्य करने के लिए प्रेरित किया है। यह समाचार मुख्प्रष्ट पर क्यों नहीं हो सकता है, और दूसरी ओर कुछ शरारती तत्वों द्वारा बलात्कार का प्रयास, इस समाचार को बड़ा चदाकर छापा गया है। पहले तो संपादक महोदय ने मेरा नाम व संस्थान पूछा, फिर बताया कि समाचार पत्र की बिक्री सकारात्मक समाचारों से नहीं होती, पाठक नकारात्मक समाचारों को चाव से पड़ता है। इसी प्रकार के कुछ और तर्कों द्वारा उन्होंने मुझे  संतुष्ट करने का प्रयास किया। उसके पश्चात् हम लोग जलपान की ओर बड़े, संपादक महोदय ने अनौपचारिक रूप से मुझे बताया कि समाचार पत्र वह छापता है जो बिकता है। शायद आज भी यही हो रहा है। 

परन्तु इतना सब कुछ होते हुए भी, मैं यह सोचता हूँ कि आज का पाठक व दर्शक, नकारात्मक समाचारों व सन्दर्भों से इतना दुखी हो चुका है कि यदि कोई पूर्ण रूप से सकारात्मक समाचारों पर केन्द्रित चैनल प्रारंभ किया जाये तो उसे काफी सराहना मिलेगी। मुझे याद है जब पीटर मुख़र्जी स्टार ग्रुप के सीईओ हुआ करते थे, तब उन्होंने स्टार ग्रुप के कई नए चैनल प्रारंभ किये, एक रिपोर्टर ने उनसे पूंछा कि क्या आपके अनुसार इस प्रकार का विस्तार बाज़ार को देखते हुए ठीक कदम है, तो पीटर ने उत्तर दिया ... यदि कोलगेट बारह सेगमेंट में बिक सकता है, तो स्टार क्यों नहीं। आज मुझे लगता है आज के दर्शकों में एक वर्ग इस प्रकार के प्रयासों को अवश्य स्वीकार करेगा और उसका बाज़ार भी साथ देगा। 

अंत में दुष्यंत कुमार जी की दो पंक्तियाँ याद आती हैं:

कौन कहता है आसमान में सुराग नहीं हो सकता 
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो 

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