हिंदी दिवस - १४ सितम्बर २०१०

आज के दिन वर्ष १९४९ को भारतीय संविधान ने हिंदी को राज भाषा घोषित किया.  तब से आज तक हम हिंदी को अपनी राष्ट्रभाषा मानते आये हैं.  मुझे अपने हिंदी भाषी होने पर गर्व है क्योंकि यह मेरी राष्ट्रभाषा के साथ साथ मात्रभाषा भी है.  पिछले ६१ वर्षों मे हिंदी ने अपने भिन्न रूप देखे हैं और आज इस बाजारी युग मे भी वह अपनी पहचान बनाने मे काफी सक्षम रही है.  हाँ यह बात अवश्य है कि जिस प्रकार से अंग्रेजी ने अपना मुकाम हमारे व्यवहार मे बनाया है, हिंदी कहीं उससे पीछे खड़ी प्रतीत होती है, यह एक शर्म की बात तो है परन्तु कहीं ना कहीं इसके लिए हिंदी स्वयं या उसके जानने वाले, उसका प्रचार-प्रसार करने वाले, साहित्यकार, आदि जिम्मेदार हैं.  जिस प्रकार से हिंदी के संस्थानों मे राजनीति ने अपनी पैठ बनायीं है उससे यह कह पाना बहुत मुश्किल है कि हिंदी के प्रचार-प्रसार मे लगे यह तथाकथित सरोकारी अपने आशय मे कितने इमानदार रहे हैं या रहेंगे.
आज भिन्न विषयों का साहित्य हिंदी भाषा मे उपलब्ध नहीं है, और यदि है भी तो उसका स्तर काफी गिरा हुआ है.  आवयश्कता इस बात की है कि हिंदी मे अधिक से अधिक अनुवाद हों और हर विषय मे हिंदी माध्यम की पुस्तकें उपलब्ध रहें जिससे इस अभाव को दूर किया जा सके.  इस कार्य हेतु हम सभी को आपस मे इमानदारी से कार्य करना होगा.....

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