पानी, मिट्टी और पत्थर

बारिश की आव्यश्यक्ता सभी को है। प्रकृति का यह उपहार जीवन हेतु अत्यंत महत्वपूर्ण है।

बारिश से पानी है, पानी से जीवन।

पानी और जीवन का साथ चोली दामन के साथ से भिन्न नहीं है। मिट्टी और पत्थर दोनों बारिश की प्रतीक्षा करते हैं। जहां एक ओर बारिश पत्थर को धोती व चमकाती है, दूसरी ओर मिट्टी बारिश की बूंदों को अपने मे संजोती है।

मिट्टी के स्वरूप को परिवर्तित करने में पानी की अहम भूमिका है, और यदि वह बारिश का पानी हो तो चार चांद लग जाते हैं। मिट्टी ही तो पत्थर बनती है, और बिना पानी के ऐसा असंभव है।

कुछ पत्थर पानी से मिट्टी बन जाते हैं। कुछ ही, सभी पत्थर नहीं। यह देश, काल व परिस्थिति पर निर्भर करता है।

हम मिट्टी हैं, या पत्थर?

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गांव और शहर में मिट्टी और पत्थर का अंतर है| जिस गति से गांव शहर बनते हैं, उसी गति से मिट्टी, पत्थर बनती है।

बारिश का पानी पत्थर से टकराता है, पत्थर को चमकाता है; अपने आवेग से पत्थर को मिट्टी बनाता है| लेकिन ऐसा कम ही होता है।

पत्थर-वन अपने विस्तार में व्यस्त रहते हैं, बारिश के पानी के थपेड़ों से परे।

मिट्टी पानी के साथ खेलती है, अपनी घनिष्टता को प्रदर्शित करती है, विकार व प्रकार दोनों रूपों से।

मिट्टी का स्वभाव समावेशी है, उसकी लोच उसकी शक्ति है। इस शक्ति का दुरूपयोग भी होता है, परंतु हमेशा नहीं।

देश, काल व परिस्थिति, मिट्टी व पत्थर के संबंध व समीकरण को निर्धारित करते हैं।

गांव, शहर बन रहे हैं और शहर, वैश्विक गांव।

कालचक्र गतिमान है, गति-सीमा से परे।

[20:11, 11 अप्रैल, 2018]

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